हो मंगलमय वर्ष सभी को
मुक्त्िा मिले अवसादों से
हो न प्रदूषित निर्मल निर्झर
कटु, विषाक्त संवादों से।
उत्पीड़न का ज्वार थमे
सद्भाव शीघ्र स्थापित हो
पुण्य धरा गौतम, गाँधी की
प्रभु न कभी अभिशापित हो।
बाढ़, भूख, भूकम्पन की अब
पड़े न काली परछाईं
फूले-फले सुरभि दे सबको
उत्कर्षों की अमराई।
कटुता, संशय, मन का कल्मष
हो धोने की तैयारी
रंग बिखेरे हर आँगन में ,
फिर होली की पिचकारी।
लेखक की पुस्तक 'मरु में महके गीत-प्रसून' से साभार ।
मुक्त्िा मिले अवसादों से
हो न प्रदूषित निर्मल निर्झर
कटु, विषाक्त संवादों से।
उत्पीड़न का ज्वार थमे
सद्भाव शीघ्र स्थापित हो
पुण्य धरा गौतम, गाँधी की
प्रभु न कभी अभिशापित हो।
बाढ़, भूख, भूकम्पन की अब
पड़े न काली परछाईं
फूले-फले सुरभि दे सबको
उत्कर्षों की अमराई।
कटुता, संशय, मन का कल्मष
हो धोने की तैयारी
रंग बिखेरे हर आँगन में ,
फिर होली की पिचकारी।
लेखक की पुस्तक 'मरु में महके गीत-प्रसून' से साभार ।
1 टिप्पणी:
डा. उन्द्रबिहरी सक्सेना की लोकप्रिय प्रतिनिधि रचना जो सीधे ह्रिदय को छू लेने की सामर्थ्य रखती है. साधुवाद.
-डा. रघुनाथ मिश्र्
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