बनना व
बनाना ,कोई आसान नहीं है.
अंदर
से दे आनन्द, वो सामान नहीं है.
अख़लाक़ की कमी न हो, ये बात जरूरी,
सच्चाई
बयानी , कोई अपमान नहीं है.
सारी
उमर में आज तलक, होश ही नहीं,
समझ न
पायें लोग, वो व्याख्यान नहीं है.
14 दिसम्बर को उज्जैन में 17 वें विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर के अधिवेशन में 'भारतीय भाषा रत्न' से सम्मानित होते हुए डा0 मिश्र |
औरों के लिये जिया जो, नादान नहीं है.
जिसमें मदद नहीं, किसी लाचार के
लिये,
सचमुच
ही मुक़म्मल, वो खानदान नहीं है.
बैठे-बिठाए भेजे, जरूरत की सभी
चीज़,
इस जग
में इस तरह का, आसमान नहीं है.
कठिनाइयों से जूझ कर फ़ौलाद बनेंगे,
रोना
किसी मसले का समाधान नहीं है.
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