बस्तियाँ रोशन करने का वादा है।
अँधेरों से दोस्ती करने का इरादा है।
अँधेरों से दोस्ती करने का इरादा है।
मुद्दतों से काबिज़ हैं दिन रात की दूरियाँ,
दूर करने को उफ़ुक भी आमादा है।
ऐसे सहरा हैं जहाँ रात को उगता है सूरज,
वहाँ ना कोई बस्ती है ना नर ना कोई मादा है।
फ़लक़ पे सितारों का कारवाँ हो तो हो,
जमीं को तो आफ़ताब भी ज़ियादा है।
उसके यहाँ देर सही मगर अंधेर नहीं,
वहाँ न कोई कमज़ोर है न कोई दादा है।
हक़ अदा कर मत उँगली उठा किसी पर,
शतरंज की बिसात का तू इक पियादा है,
हाथ थाम मौक़ा मिले न मिले फिर ‘आकुल’,
दोस्ती कर यह वक़्त का तगादा है।
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