डा0 नलिन की पुस्तक 'चाँद निकलता होगा' हाल ही में प्रकाशित उनका ग़ज़ल संग्रह है। इसका रसास्वादन करें। ई-पुस्तक के रूप में आपके लिए प्रस्तुत है, उनकी पुस्तक। उनकी एक प्रतिनिधि ग़ज़ल आपकी नज़र है
पटरी पर पहियों के चलते
जैसे चाहो शब्द निकलते।
पाँवों तले न जाने क्या था
पल पल जिस पर रहे फिसलते
आ ही जाती है सुध-बुध भी
जीवन की संध्या के ढलते।
सब भटके हैं दौड़ भाग कर
बढ़ते जाते 'नलिन' टहलते।।
पटरी पर पहियों के चलते
जैसे चाहो शब्द निकलते।
डा0 नलिन गोष्ठी में काव्य पाठ करते हुए |
मानो तो संगीत बसा है
और न मानो तो सुर खलते।
धरती की यदि तपन देख ली
पाँव रहेंगे प्रतिपल जलते।
निगले कैसे कैसे विष हैं
जिनको बनता नहीं उगलते।पाँवों तले न जाने क्या था
पल पल जिस पर रहे फिसलते
आ ही जाती है सुध-बुध भी
जीवन की संध्या के ढलते।
सब भटके हैं दौड़ भाग कर
बढ़ते जाते 'नलिन' टहलते।।
1 टिप्पणी:
realy deep soft hearted gazals
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