समझाते समझाते बहुत थक गया हूँ
लगता है उम्र यूँ ही
बीत जायेगी सबको समझाने में
उथला कुँआ खोदने से कुछ न हासिल होगा
मिलेगा पानी केवल उसको
और गहराने में
बुराई हम में कितनी है इसकी तलाश अंदर करो
क्यों ढूँढ़ते हो उसे बाहर जमाने में
जवाँ हो, ज़हीन हो और खुबसूरत भी
तो दावत क्यों देते हो मौत को
अरे, जो मज़ा ज़िन्दगी में है नहीं है मर जाने में
सिकन्दर को भी पता चला मरने के बाद
मज़ा तो है खाली हाथ आने में
खाली हाथ जाने में
अब हम बच्चे नहीं रहे, बड़े हो गये हैं
कुछ भी नहीं रखा है रूठने और मनाने में
छेड-छाड़, इशारे-विशारे
फ़िकरे-विकरे में कुछ भी नहीं है
कशिश ऐसी पैदा करो कि
वो ख़ुद चलकर आये तेरे दयारों में
अपने काम को अंज़ाम दो पूरी शिद्दत से
कुछ भी नहीं रखा है पुरानी दास्तानों में
तलवारों न कल कुछ हासिल हुआ
न ही कल होगा 'मुसाफिर'
उसे रहने दो अपनी-अपनी म्यानों में।
संदीप 'सृजन' सम्पादित 'शब्द प्रवाह' जुलाई-सितम्बर 2012 अंक से साभार
लगता है उम्र यूँ ही
बीत जायेगी सबको समझाने में
उथला कुँआ खोदने से कुछ न हासिल होगा
मिलेगा पानी केवल उसको
और गहराने में
बुराई हम में कितनी है इसकी तलाश अंदर करो
क्यों ढूँढ़ते हो उसे बाहर जमाने में
जवाँ हो, ज़हीन हो और खुबसूरत भी
तो दावत क्यों देते हो मौत को
अरे, जो मज़ा ज़िन्दगी में है नहीं है मर जाने में
सिकन्दर को भी पता चला मरने के बाद
मज़ा तो है खाली हाथ आने में
खाली हाथ जाने में
अब हम बच्चे नहीं रहे, बड़े हो गये हैं
कुछ भी नहीं रखा है रूठने और मनाने में
छेड-छाड़, इशारे-विशारे
फ़िकरे-विकरे में कुछ भी नहीं है
कशिश ऐसी पैदा करो कि
वो ख़ुद चलकर आये तेरे दयारों में
अपने काम को अंज़ाम दो पूरी शिद्दत से
कुछ भी नहीं रखा है पुरानी दास्तानों में
तलवारों न कल कुछ हासिल हुआ
न ही कल होगा 'मुसाफिर'
उसे रहने दो अपनी-अपनी म्यानों में।
संदीप 'सृजन' सम्पादित 'शब्द प्रवाह' जुलाई-सितम्बर 2012 अंक से साभार
1 टिप्पणी:
REALITY OF LIFE EXPRESSED.CONGRATS.
- DR.RAGHUNATH MISHRA
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