शनिवार, 30 दिसंबर 2017

प्‍यार में अच्‍छी लगे तकरार भी (गीतिका)



छंद- आनंदवर्धक
मापनी- 2122 2122 212
पदांत- भी
समांत- आर

प्यार में अच्छी लगे तकरार भी.
जीत में मिलती रही है हार भी.

बाग़ सब मिलते नहीं फूलों भरे,
संग फूलों के मिलेंगे ख़ार भी.

राह कैसी भी मिले चलते रहो,
ढूँढ़ लोगे एक दिन तुम यार भी.

बात तब दोनों तरफ ही आग हो,
टूट के करते हों' दोनों प्यार भी.

युद्ध में अरु प्रेम में जायज है' सब,
है जुनूँ तो है झुका संसार भी.

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

सान्निध्य: जाते जाते साल कह रहा (गीतिका)



सान्निध्य: जाते जाते साल कह रहा (गीतिका): छंद- लावणी-  शिल्‍प विधान- मात्रा भार- 30. 16, 14 पर यति अंत 3 गुरु वाचिक. पदांत- मुझसे समांत- आया जाते-जाते साल कह रहा , सोचो...

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

सान्निध्य: आगत का स्‍वागत करो, विगत न जाओ भूल

सान्निध्य: आगत का स्‍वागत करो, विगत न जाओ भूल: 1- आगत का स्‍वागत करो, विगत न जाओ भूल उसको भी सम्‍मान से, करो विदा दे फूल करो विदा दे फूल, सीख लो जाते कल से तोड़ दिये यह भ्रम, बँध...

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

डा0 नलिन, कोटा, राजस्‍थान

इस बस्‍ती में बड़े झमेले
इक पल रोये इक पल खेले

देख चुके सब विद्यालय अब
हम ही गुरु हैं हम ही चेले

आज आपके पास हुए पर
कितने कितने पापड़ बेले

साथ सभी रहते थे फि‍र भी
सुख दुख अपने अपने झेले

आज मात्र रहते हैं सब तो
जीवन की घड़ियों के ठेले

पास हमारे प्रेम-प्रीति है
चाहे जो कोई भी ले ले

छोड़ 'नलिन' मित्रों की संगत
अच्‍छा है अब रहें अकेले।

डा0 नलिन की पुस्‍तक 'चाँद निकलता तो होगा' से साभार

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

कन्‍हैया लाल अग्रवाल 'आदाब', आगरा

ताजमहल और उद्योग की
आपस में कब बनी है उनमें तो शुरु से ही
आपस में ठनी है।
जिन उद्यमियों ने ताजमहल बनाया था
बादशाह ने उनकी ही
जिन्‍दगी में जहर घुलवाया था ।
ताज पर काले धब्‍बे खुद
शाहजहाँ ने लगाये थे
जब उसने ताज बनाने वाले कारीगरों के
हाथ कटवाये थे।
लेकिन उनके वंशज
अब भी छोटे छोटे
ताजमहल बना रहे हैं और
वक्‍त के स्‍वयंभू बादशाहों को
बता रहे हैं कि
उद्यमियों को उजाड़ने से
उद्योग नहीं उजड़ते हैं
पुराने कारखानों की राख पर भी
नये कारखाने बनते हैं।

उनके काव्‍य संग्रह 'विविधा' से साभार। 

बुधवार, 14 अगस्त 2013

गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल', कोटा

परिवर्तन की एक नई आधारशिला रखना है 

रि‍वर्तन की एक नई आधारशि‍ला रखना है।
न् याय मि‍ले बस इसीलि‍ए आकाश हि‍ला रखना है।
द्रवि‍त हृदय में मधुमय इक गु़लजार खि‍ला रखना है।

र दम संकट संघर्षों में हाथ मि‍ला रखना है।


मर शहीदों की शहादत का इंडि‍या गेट गवाह है।
दर वीर जब बि‍फरे अंग्रेजों का हश्र गवाह है।
 स्वाह हुए कुल के कुल अक्षोहि‍णी कुरुक्षेत्र गवाह है।
ब से जो भी हुआ आज तक सब इति‍हास गवाह है।

दो लफ्जों में उत्‍तर ढूँढ़े हो स्‍वतंत्र क्‍या पाया?
र कूचे और गली गली में क्‍यूँ सन्‍नाटा छाया?
जात पाँत का भेद मि‍टा क्‍या राम राज्‍य है आया ?
ख कर मुँह को बंद जी रहे क्‍यों आतंकी साया ?

तेरी मेरी सब की है अक्षुण्‍ण धरोहर आजादी।
हे न हम गर जागरूक पछतायेंगे जी आजादी।
र हाल न मानव मूल्‍य सहेज सके तो कैसी आज़ादी।

मेरा भारत है महान् नहीं कहते कभी अघाते।
राम रहीम कबीर सूर की वाणी को दोहराते।

भाग्‍य वि‍धाता, सत्‍य मेव जयते, जन गण मन गाते।
स्‍म रि‍वाज़ नि‍भाते और हर उत्‍सव पर्व मनाते।
ब से भारत माता की जय कह कर जोश बढ़ाते।

हका दो अपनी धरती फि‍र हरि‍त क्रांति‍ करना है ।
हार नहीं हर हाल प्रकृति‍ को अब सहेज रखना है ।
न्याय मि‍ले बस इसीलि‍ए आकाश हि‍ला रखना है।


परि‍वर्तन की एक नई आधारशि‍ला रखना है।